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नज़्म
कोई फ़ल्सफ़ा कोई पाइंदा अक़दार नहीं, मेआर नहीं है
इस पर अहल-ए-दानिश विद्वान, फ़लसफ़ी
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मगर आज धरती से अम्बर के उस पार हद्द-ए-नज़र तक
ख़िरद की सुहानी सुहानी उड़ानों का पल बन चला है
तख़्त सिंह
नज़्म
ख़ून रो हाँ ख़ून रोता हश्र इस अदबार पर
वो पुराने तौर ऐ दिल अब कहाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
है फिर ज़रूरत-ए-इक़बाल तर्बियत के लिए
वगर्ना क़ौम पर ये इम्तिहाँ भी मुश्किल है
मौलवी सय्यद मुमताज़ अली
नज़्म
थोड़ी देर को धरती से अम्बर पर जाना चाहता था
चिड़िया पानी पीने आई लेकिन कोई बात न की
ज़ीशान साहिल
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आया हमारे देस में इक ख़ुश-नवा फ़क़ीर
आया और अपनी धुन में ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गया